Wednesday, October 27, 2010

जिला कलेक्‍टर स्‍तरीय जन सुनवाई


प्रार्थी रमेश कुमार सुथार द्वारा दिनांक 17-5-2007 को जिला कलेक्‍टर स्‍तर पर हो रही जन सुनवाई में एक आवेदन पत्र पेश अपनी जमीन से सम्‍बन्धित सभी दस्‍तावेजों की नकलें चाही गई|
नगर पालिका भीनमाल ने येनकेन प्रकारण प्रार्थी को नकलें देना नहीं चाहता था| आखिर में दिनांक 15-10-2007 (पत्र क्रमांक-नपाभी/5221/07) को नगर पालिका भीनमाल ने नकलें उपलब्‍ध नहीं कराने का कारण यह बताया कि ‘उपलब्‍ध होने पर दी जायेगी’ एवं दिनांक 18-6-2008 (पत्र क्रमांक-नपाभी/1708/08) को नगर पालिका ने लिखा की – ‘परन्‍तु रेकर्ड 38-40 वर्ष पुराना होने से उपलब्‍ध नहीं हो पा रहा है’
नगर पालिका के इस तरह के जवाब मिलने पर श्रीमान् उपखण्‍ड अधिकारी भीनमाल ने दिनांक 23-8-2008 (पत्र क्रमांक-जनसुनवाई/08/6316) ने नगरपालिका को लिखा कि- आप द्वारा प्रासंगिक पत्र के द्वारा इस कार्यालय को अवगत कराया है कि वांछित प्रकरण में चाही गई नकलों का रेकार्ड 38-40 वर्ष पुराना होने से उपलब्‍ध नहीं हो पा रहा है| इस क्रम में लेख है कि अभी हाल ही में आपके नगर पालिका कार्यालय से सेवानिवृत वरिष्‍ठ कर्मचारी श्री नैनाराम बंजारा सेवानिवर्त हुये है उक्‍त सेवानिवृत कर्मचारी भूमि सम्‍बन्‍धी एवं अन्‍य पालिका का महत्‍वपूर्ण कार्य भार देखता आ रहा है| अतः उक्‍त सेवानिवृत कर्मचारी द्वारा अपने जिम्‍मे का चार्ज सेवानिवृत होने से पूर्व पालिका कर्मचारी को उक्‍त प्रकरण से सम्‍ब‍न्धित पत्रावली दर्ज है तो परिवादी श्री रमेश कुमार सुथार को उक्‍त पत्रावली की नकलें उपलब्‍ध करावाई जाना सुनिश्चित करे| यदि उक्‍त प्रकरण से सम्‍बन्धित पत्रावली चार्ज रिपोर्ट में अंकित नहीं है तो यह सुनिश्चित करे| यदि उक्‍त प्रकरण से सम्‍बन्धित पत्रावली चार्ज रिपोर्ट में अंकित नहीं है तो यह सुनिश्चित करे कि उक्‍त पत्रावली तत्समय किसके चार्ज में रही तथा किस कर्मचारी द्वारा चार्ज आदान-प्रदान की सूची से भलीभाति स्‍पष्‍ट हो जायेगा| फिर भी यदि उक्‍त पत्रावली उपलब्‍ध होना सम्‍भव नहीं हो पाने की स्थिति में तत्समय उक्‍त पत्रावली जिस कर्मचारी के चार्ज में रही है| उक्‍त कर्मचारी के विरूद्व पुलिस थाना में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई जाकर स्थिति स्‍पष्‍ट की जावे ताकि लम्‍बे समय से चल रहे जिला स्‍तरीय जन सुनवाई प्रकरण संख्‍या 496/07 दिनांक 17-05-2007 का निस्‍तारण किया जा सके|
कृपया उक्‍त पत्र को सर्वोच्‍च प्राथमिकता देवें|

Wednesday, October 20, 2010

क़ानूनी सलाह दीजिये

अशोक कुमार ने अपनी जमीन के नियमन (पट्टा) हेतु नगरपालिका में अपने नाम से आवेदन पेश किया| नगर पालिका ने नियमन हेतु शुल्‍क जमा कराने के आदेश अशोक कुमार के नाम कर दिये| अशोक कुमार ने नियमन शुल्‍क नगर पालिका में जमा करा दी|

नियमन शुल्‍क जमा कराने के बाद अशोक कुमार ने अपने कब्‍जे के आधार पर जमीन का बेचान जरीए रजिस्‍ट्री राजेश के नाम कर दिया| राजेश ने उक्‍त जमीन का पट्टा अपने नाम बनाने के लिए नगरपालिका नियमन को आवेदन किया| नगर पालिका ने राजेश के आवेदन को अशोक कुमार के आवेदन के साथ जोड दिया|

नगर पालिका ने अशोक के नाम पट्टा जारी कर दिया|

पट्टा जारी होने के बाद उसी भूमि को पुनः रजिस्‍टरी कराकर उसी राजेश को पट्टे के आधार पर पुनः बेची|

1- अशोक के द्वारा जमीन का बेचान देने के बाद भी नगर पालिका ने पट्टा अशोक के नाम जारी किया| अगर यह कानूनी सही नहीं है तो सलाह दे|

2- अशोक ने एक ही जमीन को रजिस्‍टर के जरीए दो बार बेचा| अगर यह कानूनी सही नहीं है तो सलाह दे|

Tuesday, October 19, 2010

अशिक्षित और गरीब लोगों के साथ अन्याय कहा होता है?

हमारी न्यायपाली सभी के साथ पूरी ईमानदारी से न्याय करती है अशिक्षित और गरीब लोगो के साथ अन्याय तो निचले स्टार पर यानि ग्राम पंचायत / नगर पालिका में होता है। वहां पर दस्तावेजों को गायब कर, दस्तावेजों में हेरा-फेरी कर, समय पर नक़ल नहीं देना, आगामी कार्यवाई की समय सीमा के बाद नकले देना, अधूरी नकले देना इस प्रकार निचले स्टार पर पुरा केस को अशिक्षित / गरीब के विरूद्ध बना दिया जाता है| जिसके कारन अदालत में वह केस अशिक्षित / गरीब के विरूद्ध जाता है और वह गरीब और गरीब होता है

Friday, October 15, 2010

भारत में सात करोड़ मकानों की कमी

विश्व बैंक ने कहा कि शहरीकरण से मकानों की बढ़ती मांग के बीच भारत में 7 करोड़ मकानों की कमी है।
बैंक ने अपनी एक रपट में कहा है कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में मध्यम तथा निम्न वर्ग के लगभग तीन करोड़ परिवार मकान खरीदना चाहते हैं लेकिन उनको आवास ऋण सुलभ नहीं है।

बैंक ने दक्षिण एशिया में आवासीस वित्तपोषण पर अपनी रपट में कहा है, 'केवल भारत में ही, आवासीय इकाइयों की कमी दो करोड़ से लेकर सात करोड़ तक है क्योंकि इसमें से आधी मांग को आवासीय तथा आवासीय वित्तपोषण बाजारों द्वारा लाभप्रद सेवाएं दी जा सकती हैं।

इसमें कहा गया है कि वित्तीय प्रणाली में कमियों को दूर किया जाना चाहिए ताकि रेहन दाताओं तथा डेवलपरों के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण अवसर सुनिश्चित किए जा सकें। रपट के अनुसार भारत में उन 2.3-2.8 करोड़ परिवारों के लिए मकान बनाना आर्थिक रूप से व्यावहारिक होगा जिनकी मासिक आय 5,000-11,000 रुपए है। ये परिवार देश की शहरी जनसंख्या का 45 प्रतिशत हिस्सा है।

सता रहा पौने दो करोड़ का करंट

डिस्कॉम की ओर से मिले बिलों को देखकर कई उपभोक्ताओं के होश उड़ गए हैं। विभाग ने पिछले दिनों की बकाया निकालकर इन उपभोक्ताओं को बिल थमा दिए हैं। खास बात यह है कि कई उपभोक्ताओं को मिलाकर यह राशि करीब पौने दो करोड़ रूपए है।

इस प्रकार के बिल देखकर उपभोक्ताओं को अब विभाग के चक्कर लगाने पड़ रहे हैंै, लेकिन डिस्कॉम अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा बिल में अधिक राशि को ऑडिट की वसूली होना बताकर जमा करवाना अनिवार्य बताया जा रहा है। जिसको लेकर उपभोक्ताओं में खासा आक्रोश बना हुआ है।जानकारी के अनुसार गत माह डिस्कॉम सहायक अभिंयता भीनमाल के अधीनस्थ नगर सहित करीब तीन दर्जन गंावों के करीब बीस हजार उपभोक्ताओं की विभागीय ऑडिट टीम जोधपुर द्वारा 12०० उपभोक्ताओं से पौने दो करोड़ से अधिक की राशि वसूली योग्य बताकर इस राशि को आगामी बिल के साथ जोड़ दिया। इस कारण कई उपभोक्ताओं के इस माह का बिल हजारों और लाखों में आते ही उनके हाथ पैर कंाप गए। अब यह उपभोक्ता पिछले दस दिनों से डिस्कॉम कार्यालय के चक्कर काट-काटकर थक गए हंै। आर्थिक रुप से कमजोर कई उपभोक्ताओं के समक्ष हजारों में बिजली बिल चुकाना और आगे दीपावली का त्यौहार मनाना मुश्किल बना हुआ है, क्योंकि उनके समक्ष बिल जमा नहीं करवाने की दशा में कनेक्शन काटने का भय भी बना हुआ है। वहीं कई कृषि उपभोक्ताओं के लिए लाखों में बिल का भुगतान करना मुश्किल कार्य बन गया है।



प्रकरण दर्ज करवा लें

ञ्चऑडिट के दौरान वाजिब राशि को भरवाने के लिए कहा जा रहा है, यदि उपभोक्ता संतुष्ट नहीं है तो वह समझौता समिति में प्रकरण दर्ज करवा सकता है और बिलों की जांच में गैर वाजिब राशि जुड़ी है तो उसमें सुधार के लिए पुन: ऑडिट टीम को बुलाया जाएगा।

- बीएल सुखाडिय़ा,

डिस्कॉम सहायक अभियंता, भीनमाल

भ्रष्टाचार का क़ानूनी रास्ता -- "समझौता समिति"- जो व्यक्ति रिश्वत देता है उसी का बिल होता है कम.....

भ्रष्टाचार का अड़ा विधुत विभाग

Wednesday, October 13, 2010

एक इमानदार व्यक्ति

कानून के जानकारों को मेरा नमस्कार,
मुझे भारत के संविधान पर पूर्ण विश्वास है। मैं न्याय पालिका पर पूर्ण विश्वास करता हूँ। शिक्षा व् जानकारी के आभाव में अगर कोई एसा वेसा लिखा होतो माफ़ कर देना।

एक जमीन के हक़ को लेकर नगर पालिका, कलेक्टर, कोर्ट, हाई कोर्ट में कई केस चल रहे है। जबकि जमीन एक है, मूल विवाद के पिता की जमीन है और दो बेटो में बाटनी है। वर्त्तमान में उस एक जमीन को लेकर हाई कोर्ट में लगभग १० केस चल रहा हेई और हो सकता है। यह केस सुपरिम कोर्ट में भी जा सकता है। और उसकी एक जमीन को लेकर भविष्य में भी कई केस पैदा होंगे।

एक पिता की जमीन उसे दो भाई में आपस में बांटनी है।

वर्तमान में इस विवाद को लेकर १५-२० केस अलग अलग अदालतों में चल रहा है और इसी विवाद को लेकर भविष्य में केसों की संख्या बड़ती जायेगी।

आप जानते है एसा क्यों हुआ?
इतनी छोटी बात si को लेकर इतने सारे केस क्या हुआ?

यह सब एक इमानदार व्यक्ति की ईमानदारी से हुआ है। अगर जमीन मालिक आपनी ईमानदारी छोड़ कर नगर पालिका के कर्मचारी को रिश्वत में दस हजार रुपए दे देता जो उसने मांगे थे। तो आज अदालते में इतने सारे केस विचाराधीन नहीं होते। और उस ईमानदारी का परिवार भी खुश व उच्च शिक्षा प्राप्त करता।
उस की ईमानदारी की वजह से आज उसका परिवार अदालतों के चाकर कट रहा है।

अगर उस जमीन के कारण जितने भी केस पैदा हुआ है। उन्ह सभी केसों को मिला कर स्टार्ट से जाँच करवा कर नय सिरे से विवाद पर कार्यवाही करने के हमारे देश के कानून में क्या है?
एसा क्या करे की जिससे सभी केस मिल जाये और स्टार्ट से जाँच हो जाये।

अगर एसा हो जाता हैतो विचाराधीन करोड़ केस की संख्या कम हो कर ५० लाख हो जाएगी
और देश का पैसा भी बच जायेगा


Monday, October 11, 2010

सच बोलने की saja

देश की आदालतो में ४ करोड़ केस क्या है?

कभी सरकार ने यह जानने को कोशिश की - अदालतों में केस की संख्या दिन-बी-दिन क्या बढ रही है? किन-किन कारणोंन से अदालतों में केसों की संख बढ रही है?जिसके कारण आज देश की अदालतों में ४ करोड़ केस विचाराधीन है? केसों की संख्या कम की जा सकती है।कई केस तो एक दुसरे से जुड़े होते है. अगर इस प्रकार के केसों को मिला कर नई सिरे से सुनवाई की जाय तो? ७५% कासोने की संख्या कम हो जाएगी.

Sunday, October 10, 2010

सच के लिए जेल भी मंजूर

सलीम को परेशां करने की वजह से एसपी की तनख्वाह से छः हजार रुपए काटे गए।
सच
जानना चाहा तो हाल यह हो गया की घर छुटा, बच्चों की बधाई छूटी, झूठे मुकदमों मैं जेल कटी और जब इससे भी पुलिस का मन नहीं भरा तो इंतनी धारों में मुकदमे लादे की परिवार समेत आरटीआई के एक सिपाह को खुद को तड़ीपार करना पड़ा गया यानी पुरे एक साल से ज्यादा वक़्त तक घरबार छोड़कर फरार रहना पड़ामुरादाबाद के भोजपुर इलाके के रहने वाले सलीम बेग ने सूचना के अधिकार कानून का सहारा लेकर हारी जंग जीतीमनारेगा योजनाओं में भष्टाचार का मामला हो या फिर स्थानीय गैस एजेंसी में फर्जी कनेक्शनों की बात होसलीम ने सच को उजागर करने की अपनी जंग तमाम मुश्किलों के बाद भी जारी राखीपुलिस में जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का खामियाजा यह हुआ की सलीम को १८ दिन जेल की सीखचों के पीछे गुजारने पड़ेसलीम ने पुलिस भर्ती में आय आवेदनों और भर्ती के मापदंडों पर सवाल पूछने की हिमाकत की तो पुलिस ने पहले तो उनसे सूचनाओं के लिए लाखों रुपे की मांग कर डाली। सूचना देने में टालमटोल हुई तो सलीम राज्य सूचना आयोग चले गए और नतीजा यह हुआ की तत्कालीन एसपि देहात पर जुलाई २००७ में २५ हजार रुपए का जुरमाना लग गया। तिलामिल्लाई पुलिस ने सलीम पर मुकदमों की बोछार कर दी। मामला एक बार फिर अदालत पहुंचा और सलीम को परेशान करने की वजह से एसपी की तनख्वाह से छः हजार रुपए काटे गए। इसके बाद तो पुलिस ने सलीम को परेशान करने के लिए हर हथकंडा आजमाया। नतीजा यह हुआ कि पुलिसिया कहर से बचने के लिए सलीम को डेढ़ साल भोजपुर से बाहर रहना पड़ा। गैगस्टर एक्ट में दर्ज गैंग और उनके सदस्यों कि जानकारी के साथ ही पुलिस हिरासत में मरने वाले लोगों कि भी तादाद सलीम ने पुलिस विभाग से पूछी। इतना ही नहीं यूपी सरकार की ओर से मायावती के जन्मदिन पर छोड़े गे कड़ीयों के बारे में भी जानकारी मांगी। पुलिस और प्रशासन की लाख ज्यादतियों को झेलने के बाद भी सलीम सच्चाई के रस्ते पर निडर होकर चाले जा रहे है।

नकारा है वह प्रजातंत्र जो पगार तक नहीं बढ़ाने दे

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
जलकुकड़े देखना हो तो कोई भारत आए। अब बताइये, दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र की सबसे ताकतवर संस्था के सदस्यगण, महँगाई के बोझ से दबकर टेढ़े होने से बचने के लिए अगर अपनी पगार खुद बढ़ा लेते हैं तो इसमें जलने की क्या बात है। यह हमारे देश देश की विशेषता है, किसी को कुछ ज़्यादा ही हासिल हो जाए, भले ही वह तनख्वाह हो, बख्शीस हो, लूट में हिस्सा हो, भीख हो........तो दूसरे लोग धूँ-धूँ कर जलने लगते हैं।
देश के नेतृत्व की तनख्वाह बढ़ी देख जो ज्वलनशील लोग जल रहे हैं उनमें ज़्यादातर वे लोग हैं जो खुद भी तनखैये हैं और जिन्हें अपनी तनख्वाह खुद बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं है। इन तनखैयों की भी बढ़ जाती, भले ही उतनी ना बढ़ती जितनी जनसेवकों की बढ़ी है, तो जलने की यह क्रिया उतनी लपटदार नहीं होती जितनी होती देखी जा रही है।
अरे जलकुकड़ों, ज़रा शर्म करो ! यह भी कोई बात होती है, आखिर वे देश के कर्णधार हैं, दाल उनके लिए भी सौ रुपए किलो हुई है, सब्ज़ियाँ उनकी सब्ज़ी मंडी में भी सत्तर-अस्सी चल रही है, पेट्रोल-डीज़ल उनकी भी बारह बजा रहा है। एक तुम्हीं नहीं हो जिसे महँगाई डायन खाए जा रही है। यह बात अलग है कि वे पूरे के पूरे घी की कड़ाही में तर हैं।
बकवादी बकवास कर रहे हैं कि जब सन्तानवे फीसदी आम जनता औसत बीस रुपट्टी रोज़ पर गुज़र-बसर कर रही है तो ये जनता के चुने हुए प्रतिनिधि कौन से लाट साहब हैं जो उनकी तनख्वाह हज़ारों-लाखों में हो.......! अरे, जनता को बीस ही रुपए रोज़ मिल रहे हैं तो इसमें बेचारे जनसेवकों का क्या दोष! बीस रुपए क्या अगर बीस पैसे भी मिलें तो इसमें उनका क्या कसूर ! अंबानी भाइयों को करोड़ों रुपया महीना मिलते हैं तो क्या उसमें भी उन बेचारों का दोष है! मूर्खों, क्या वे लोगों की तनख्वाहें, मजदूरी तय करने के लिए संसद में बैठे हैं! और कोई दूसरा काम नहीं है उनके पास। कितने महत्वपूर्ण काम उनके कंधों पर हैं, कार्पोरेट घरानों का खयाल रखना पड़ता है, उनके हितों के लिए ईंट से ईंट बजानी पड़ती है, खुद कभी स्कूल में सवालों के जवाब न लिखें हों मगर संसद में भाँति-भाँति के सवाल बनाकर उठाना पड़ते हैं, सवालों का हिसाब किताबरखना पड़ता है। देश की समस्याओं के प्रति दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुर्सियाँ तोड़नी पड़ती हैं, माइक फेंकने पड़ते हैं, एक दूसरे का सिर तोड़ना पड़ता है, क्या कुछ नहीं करना पड़ता। यह सब क्या मुफ्त में हो जाएगा ? भुट्टे भूनने के लिए तो कोई जन प्रतिनिधि बनता नहीं है ? इन्कम तो कुछ होना ही मंगता है ना!
यह तो बहुत ही नाइन्साफी है, देश सेवा के बदले चार पैसे अगर वे गरीब किसी से ले लें तो आपको दिक्कत, संसद में सवाल उठाने के अगरचे वे पैसे चार्ज कर लें तो आपको दिक्कत, स्विस बैंक में खाता रखें तो आपको दिक्कत, तो अब क्या अपनी तनख्वाह भी छोड़ दें ? भूखों मर जाए ? क्या चाहते क्या हो आप लोग, क्या अब लोग देश सेवा भी करना बंद कर दें ? क्या देश की आम जनता का नेतृत्व करना भी बंद कर दें ? साधु बनकर पहाड़ों में चलें जाएँ ? जनता को यू ही सड़क पर छोड़ दें ?
देखिए यह पैसा ये पगार हाथों का मैल है, किसी के हाथ कम मैले है किसी के ज़्यादा! इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है! फर्क सिर्फ इतना ही तो है कि हम खुद अपना हाथ मैला नहीं कर पा रहे हैं और वे दनादन किए जा रहे हैं! अगर वे अपनी मर्ज़ी से इतना भी ना कर सकें तो फिर लानत है दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र पर, नकारा है वह प्रजातंत्र जो पगार तक नहीं बढ़ाने दे !

नकारा है वह प्रजातंत्र जो पगार तक नहीं बढ़ाने दे

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
जलकुकड़े देखना हो तो कोई भारत आए। अब बताइये, दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र की सबसे ताकतवर संस्था के सदस्यगण, महँगाई के बोझ से दबकर टेढ़े होने से बचने के लिए अगर अपनी पगार खुद बढ़ा लेते हैं तो इसमें जलने की क्या बात है। यह हमारे देश देश की विशेषता है, किसी को कुछ ज़्यादा ही हासिल हो जाए, भले ही वह तनख्वाह हो, बख्शीस हो, लूट में हिस्सा हो, भीख हो........तो दूसरे लोग धूँ-धूँ कर जलने लगते हैं।
देश के नेतृत्व की तनख्वाह बढ़ी देख जो ज्वलनशील लोग जल रहे हैं उनमें ज़्यादातर वे लोग हैं जो खुद भी तनखैये हैं और जिन्हें अपनी तनख्वाह खुद बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं है। इन तनखैयों की भी बढ़ जाती, भले ही उतनी ना बढ़ती जितनी जनसेवकों की बढ़ी है, तो जलने की यह क्रिया उतनी लपटदार नहीं होती जितनी होती देखी जा रही है।
अरे जलकुकड़ों, ज़रा शर्म करो ! यह भी कोई बात होती है, आखिर वे देश के कर्णधार हैं, दाल उनके लिए भी सौ रुपए किलो हुई है, सब्ज़ियाँ उनकी सब्ज़ी मंडी में भी सत्तर-अस्सी चल रही है, पेट्रोल-डीज़ल उनकी भी बारह बजा रहा है। एक तुम्हीं नहीं हो जिसे महँगाई डायन खाए जा रही है। यह बात अलग है कि वे पूरे के पूरे घी की कड़ाही में तर हैं।
बकवादी बकवास कर रहे हैं कि जब सन्तानवे फीसदी आम जनता औसत बीस रुपट्टी रोज़ पर गुज़र-बसर कर रही है तो ये जनता के चुने हुए प्रतिनिधि कौन से लाट साहब हैं जो उनकी तनख्वाह हज़ारों-लाखों में हो.......! अरे, जनता को बीस ही रुपए रोज़ मिल रहे हैं तो इसमें बेचारे जनसेवकों का क्या दोष! बीस रुपए क्या अगर बीस पैसे भी मिलें तो इसमें उनका क्या कसूर ! अंबानी भाइयों को करोड़ों रुपया महीना मिलते हैं तो क्या उसमें भी उन बेचारों का दोष है! मूर्खों, क्या वे लोगों की तनख्वाहें, मजदूरी तय करने के लिए संसद में बैठे हैं! और कोई दूसरा काम नहीं है उनके पास। कितने महत्वपूर्ण काम उनके कंधों पर हैं, कार्पोरेट घरानों का खयाल रखना पड़ता है, उनके हितों के लिए ईंट से ईंट बजानी पड़ती है, खुद कभी स्कूल में सवालों के जवाब न लिखें हों मगर संसद में भाँति-भाँति के सवाल बनाकर उठाना पड़ते हैं, सवालों का हिसाब किताबरखना पड़ता है। देश की समस्याओं के प्रति दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुर्सियाँ तोड़नी पड़ती हैं, माइक फेंकने पड़ते हैं, एक दूसरे का सिर तोड़ना पड़ता है, क्या कुछ नहीं करना पड़ता। यह सब क्या मुफ्त में हो जाएगा ? भुट्टे भूनने के लिए तो कोई जन प्रतिनिधि बनता नहीं है ? इन्कम तो कुछ होना ही मंगता है ना!
यह तो बहुत ही नाइन्साफी है, देश सेवा के बदले चार पैसे अगर वे गरीब किसी से ले लें तो आपको दिक्कत, संसद में सवाल उठाने के अगरचे वे पैसे चार्ज कर लें तो आपको दिक्कत, स्विस बैंक में खाता रखें तो आपको दिक्कत, तो अब क्या अपनी तनख्वाह भी छोड़ दें ? भूखों मर जाए ? क्या चाहते क्या हो आप लोग, क्या अब लोग देश सेवा भी करना बंद कर दें ? क्या देश की आम जनता का नेतृत्व करना भी बंद कर दें ? साधु बनकर पहाड़ों में चलें जाएँ ? जनता को यू ही सड़क पर छोड़ दें ?
देखिए यह पैसा ये पगार हाथों का मैल है, किसी के हाथ कम मैले है किसी के ज़्यादा! इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है! फर्क सिर्फ इतना ही तो है कि हम खुद अपना हाथ मैला नहीं कर पा रहे हैं और वे दनादन किए जा रहे हैं! अगर वे अपनी मर्ज़ी से इतना भी ना कर सकें तो फिर लानत है दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र पर, नकारा है वह प्रजातंत्र जो पगार तक नहीं बढ़ाने दे !

Saturday, October 9, 2010

फेलता भ्रष्टाचार

भ्रष्‍टाचार मिटाओ देश बचाओ Bhrashtachar Mitao Desh Bachao

देश आर्थिक रूप से गुलाम हो गया है .............

एक आजाद देश की नदी, खदान जमीन, जंगल, जल, पहाड़, बीमा क्षेत्र बैंक और सार्वजनिक निगम तक को देशी-विदेशी कम्पनियों के हाथों बेचा जा रहा हैं तब हम कैसे आजाद हैं ? एक समय इसे यह कहकर निजी हाथों से छिना गया कि यह 'राष्ट्र' की सम्पति है इसी राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर हमने परमाणु बम तक बना डाला हमारी सैन्य शक्ति का आकार भी काफी बड़ा है। हमारा दे सैनिक व्यय के मामले में दुनिया में नवें स्थान पर है। जबकि मानव विकास सूचकांक में 134 वें स्थान पर है। जब हम सारे संसाधनों को बेच डालेगें तो हमारी आजादी, सम्प्रभुंता का मतलब ही क्या हैं ? फिर हम किसकी रक्षा करेगें। जो लोग सोचतें है कि गुलामी की घोषणा टी.वी. अखबारों से होगी अब ऐसा न ही होगा यह गुलामी अपने हुक्मरानों द्वारा लादी जायेगी।

इसी गुलामी के खिलाफ अपनी आजादी को बचाये रखने और अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार रखने के लिये देश भर में किसान, खेत मजदूर, आदिवासी जगह-जगह लड़ रहे हैं। 9 अगस्त 2010 को मऊ कलेक्ट्रट में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ दिवस पर आयोजित कार्यक्रम स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय लोगों को हक दो धरने को सम्बोधित करते हुए सच्ची मुच्ची के सम्पादक अरविंद मूर्ति ने कही उन्होंने कहा कि प्रकृति, पर्यावरण और जन संघर्षो को रोकने बचाने का एक मात्र तरीका है। स्थानीय संसाधनों स्थानीय लोगों का हक हो। परन्तु सरकार यह मानने को तैयार ही नही हैं। और वह इन सारे संसाधनों को दे
शी-विदेशी पूंजीपतियों को बेच रही है। इस पूरी लूट को देश की संसद के द्वारा वैधता दी जा रही है। जो खुद इनके हाथों बिक्री हुई हैं।

धरने को पी.यू.एच.आर. के जोनल सचिव वसन्त राजभर ने सम्बोधित करते हुए कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक दे
का प्रधानमंत्री जनता के द्वारा नहीं चुना जाता है। यह लोकतंत्र के लिये दे के लिये र्म की बात है मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद की तनख्वाह दे से नहीं लेते बल्कि अमेरिका से पें लेते है। धरने को विजय सिंह हैवी ने सम्बोधित करते हुए कहाकि आपरे ग्रीन हंट के नाम पर निर्दोष गरीब आदिवासियों का सरकार कत्ल कर रही है जबकि वे अपने संसाधनों पर अपने हक की मांग कर रहे है। यह पूरी व्यवस्था अमीरों दंबगों के पक्ष में खड़ी है इसका ताजा उदाहरण हर के नर्सिंग होम के मैले के टैंक में मरे तीन गरीब सीवर सफाई कर्मियों की मौत का हैं। जब यह काम कानून अपराध है। तो इसे करवाने वालो पर आज तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई। धरने को हाजी अनवारूल हक, का रामनवल आदि ने भी सम्बोधित किया धरने में विनय कुमार, सुखराम राजभर, हाजरा खातून, अवधेश कुमार साहनी, राजकुमार, इनौस के का0 अर्जुन सहित कई प्रमुख साथी शमिल रहे धरने का आयोजन जन आन्दोलन का राष्ट्रीय समन्यव पी0यू0एच0 आर0 मूवमेंट फार राइट ने किया।

Minister of Education, India

Mr. Kapil Sibbal
Minister of Education, India

Sub: making use of CWG Sports facility into Indian International Sports University

......Dear sir;
In India, the Government system has had a legacy of colonial (mindset of ruler-ruled), and failed in understanding developmental needs of its people. After 60 years of independent statehood, any act of state is none more than a 'show off' as against a genuine expression of self development. Against all odds, India somehow could manage itself to emerge as a noticeable actor in the field of sports, and yet .... the Babu's (government IAS/ politicians) still consider our sportsmen, like beggars. For instance, in CWG, the foreign media (BBC) had to give a 'kick ass start' to the Indian government, providing it the insult it deserved, in a mood to treat foreign sportsmen like it used to treat Indian sportsmen. Time has now come that mindset of Government needs to change and it must respect sportsmen of India in a similar way, as any international citizen with same potential.

I have reflected upon this mindset of those, and fear that after 13 days of CWG games, it will have a new game to plunder CWG games village, stadia, hospital and gymnasium and media centre for their personal grab. Power and politics will finish off the properties built with public finance as it was already with Asiad Games.

As a Minister of Education, you need to have a national responsibility and must show a courage to bring up the following proposal to the cabinet:

1. All facilities created by CWG including games village, stadia, hospital, media centre etc.. should be a part of Indian International Sports University, New Delhi.

2. The University should award degree of MA (in field) for gold medallists, BA (in field) for Silver and IA (in field) for Bronze in CWG 2010 game, irrespective of the nationality of sportsmen.

3. This University shall act as nodal agency for nourishing sportsmen across the country, and affiliate the institutions with stadia and hospitals, trainers and coaches, across the India.

4. The University should award MA, BA, IA degrees for sports in different field, on the basis of annual competition, and international records. Students shall get formal and informal education on health care, mental fitness, best practices (including adverse effects of doping), and competitive and team spirit and leadership.

5. This University is an institution with world class facility, shall keep holding future CWG, Asiad, Olympics, and ideas of private branded of games, in addition to its regular annual university events. The income from these international and national events shall finance the infrastructure and operational costs.

6. The students with degree of this University shall be mentally and physically fit, and be also good in competitive and team spirit and leadership. Most of these will be sought after by recruiters from state police, private/government security services, Indian military, and in corporations. Some of those can wish to take it as career of sportsmen, and earn livelihood by bid for international awards in Olympic, CWG and Asiad etc..

7. This is a right time that congress leadership can take this decision, because Delhi and centre governments, both have Congress leadership. It may be politically correct to give this University name of Rajiv, Indira, or JawaarLal so that the opposition to it from Congress is minimized who would not like University idea.

This is very important that the corrupt government officers and petty politicians, are some how not allowed to take an advantage of the 'system' and plunder CWG village facility for own benefits. If that is allowed to happen, this becomes 'Common Wealth Games' understood as Fun (Games) with Public (Common) Money (Wealth).

May God Bless You. I hope, you can do a lot being at seat of Indian Education Minister; and if you are an honest person, at least you will raise hands by this idea.

With best regards
K G Misra

Friday, October 8, 2010

भारतीय की जान की कीमत

(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)

अरे - समझौता गाड़ी की मौतों पर - क्या आंसू बहाना था
उनको तो - पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही - जाना था
मरने ही जा रहे थे - लाहौर, करांची - या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर - ये नेता - हमारा पैसा तो ना खर्च करते

और तुम - भारतियों, टट्पुंजियों - कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी
जब हिसाब किया - तो निकला तुम्हारा ख़ून - बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो - दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या - खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख - तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख

तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन, ही अच्छे
देखो कैसे बन बैठे हैं - बिके हुए सिक यू लायर मीडिया के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है - इसलिए - यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में - तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं

जाग जा - अब तो जाग जा ऐ भारत - अब ऐसे क्यूँ सोता है
वो मार दें - और तू मर जाये - लगता ऐसा ये "समझौता" है
प्रियजनों की मौत पर - फूट फूट रोवोगे - वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है - ख़ून ना खौले जिस समाज का - वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे

पांच साल में - आधा घंटा तो - वोट के लिए निकाला कर
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें - तो उसमे से - तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है - परायों को तू मात दे दे

बुद्धिमान है तू - अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर
वोट दे कर अपनों को - वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज - समूल समाप्त कर
ऐ भारत - तू उठ खड़ा हो - निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर

अपने भारतीय होने पर - दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर - कुछ तो कर - अरे अब तो कुछ कर

रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
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तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन

(अभागे भारतीय की फरियाद पर सिक-यू-लायर(Sick you Liar, बीमार मानसिकता वाले झुट्ठे) नेता द्वारा सांत्वना भरे कुटिल उपदेश की तरह पढ़ें)
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अच्छा!!! वो दुश्मन है? बम फोड़ता है? गोली मारता है?
मगर सुन - दोस्ती में - इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है - जरुर खोलेंगे एक और खिड़की - उसकी ख़ातिर
मगर - हम नाराज़ हैं - तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है

तुम भी तो बड़े जिद्दी हो - दुश्मन भी बेचारा क्या करे
इतने बम फोड़े - शर्म करो - तुम लोग सिर्फ दो सौ ही मरे ? (कितने बेशर्म हो तुम लोग)
चलो ठीक है - इतने कम से भी - उसका हौंसला तो बढ़ता है
और फिर - तुम भी तो आखिर १०० करोड़ हो(*) - क्या फर्क पड़ता है?
[(*)
११५ करोड़ में १५ करोड़ तो विदेशी घुसपैठिये हमने ही तो अन्दर घुसाएँ हैं वोटों के लिए]

अच्छा! समझौते की गाड़ियों में दुश्मन भी आ जाते हैं???
क्या हुआ जो दिल लग गया यहाँ - और यहीं बस जाते हैं
बेचारे - ये तो वहां का गुस्सा है - जो यहाँ पर उतारते हैं
वहां पैदा होने के पश्चाताप में - यहाँ पर तुम्हें मारते हैं (क्यों न मारें?)

क्या सोचता है तू ? मरना था जिनको - वो तो गए मर
तू तो जिन्दा है ना - तो चल - अब मरने तक हमारे लिए काम कर
और क्या औकात थी उन मरने वालों की ? सिर्फ २०० रुपये मासिक कर (*१)
हम क्या शोक करें - क्यों शोक करें अब - ऐसे वैसों की मौत पर ?

अच्छा! आतंकवादी तुम्हें लूटता है? मारता है? मजहब के नाम पर ?
पर आतंकवादी का तो कोई मजहब ही नहीं होता - कुछ तो समझा कर (बेवकूफ कहीं के)
तू सहिष्णु है - भारत सहिष्णु है - यह भूल मत - निरंतर याद कर
क्या कहा? आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध का अधिकार? - बंद यह बकवास कर (अबे,वोट बैंक लुटवायेगा क्या)

इन बेकार की बातों में - न अपना कीमती वक्त बरबाद कर
भूल जा - कुछ नहीं हुआ - जा काम पर जा - काम कर

तेरे गुस्से की तलवार को - हमारी शांति की म्यान में रख
हमने दे दिया है ना कड़ा बयान - ध्यान में रख
जानते हैं हम - इस बयान पर - वो ना देगा कान
चिंता ना कर - तैयार है - एक इस से भी कड़ा बयान

दे रक्खा है उसे - सबसे प्यारे देश का दरजा (*२)
चुकाना तो पड़ेगा ना - इस प्यार का करजा
दुनिया भर से - कर दी है शिकायत - कि वो मारता है
दुनिया को फुरसत मिले - तब तक तू यूँ ही मर जा

किस को पड़ी है कि - कौन मरा - और मार गया कौन
आराम से मर - तेरे लिए भी रख लेंगे - २ मिनट का मौन

*1 : Profession Tax Rs.200/-per month
*2 : Most Favoured Nation

रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
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सरकारी कर्मचारियो के बच्चे प्राइवेट स्कुलो में क्यों?

भारत सरकार ने कभी एसा सर्वे कराया की - सरकारी कर्मचारियो के बच्चे कोंसी स्कुलो में पढ़ते है।

सरकारी अधिकारिओ/कर्मचारियो को क्यों भरोषा नहीं इन सरकारी स्कुलो पर? जिसकी वजह से वे आपने बच्चे को प्राइवेट स्कुलो में पढ़ने भजते है। क्या सरकारी स्कुल गरीब बच्चो के लिए ही है।

Tuesday, October 5, 2010

आपकी ईमानदारी देश का लाखो रूपया बर्बाद कर सकता है.



कोर्ट में ४ करोड़ केस विचाराधीन है यानि २ करोड़ लोगों ने ईमानदारी दिखाई।

हमारे देश में रिश्वत देना और लेना अपराध है। भारत सरकार ने कभी एसा कोई सर्वे कराया- रिश्वत नही देने वाले परिवारों का क्या हॉल है। इन भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियो ने उन ईमानदारी लोगो के साथ क्या किया है।

एक इमानदार व्यक्ति ने भूमि-नियमन के लिया नगर पालिका में फाइल पेश की। उस पर नगर पालिका कर्मचारी ने अपने निजिहित के लिया उक्त भूमि-नियमन की फाइल में
से उस व्यक्ति के पक्ष के दस्तावेज निकाल दिए और उस भूमि से संबधित नगर पालिका में संधारित पूर्वे के दस्तावेजो में से भी उस व्यक्ति के पक्ष के दस्तावेज निकल दिए। और पूरी फाइल उस व्यक्ति के विरोधी बना दी।
उस व्यक्ति ने अपने जायज हक़ के लिया विधिवत कई कोर्ट में केस किया है।
== हम मैंने ५ प्रतिशत लोग भी नही जानते होंगे कि एक कोर्ट केस पर देश का कितना रूपया खर्च होता है।
उस इमानदार व्यक्ति के द्वारा रिश्वत नही देने से आज उस का पूरा परिवार दुखी है, देश का धन खर्च हो रहा है। कोर्ट में केसों क़ी संख्या बड़ी है। इस प्रकार ईमानदारी से देश का धन बर्बाद हो रहा है।

Sunday, October 3, 2010

भाई जरा संभल कर, सूचना मांगना।

भाई जरा संभल कर, सूचना मांगना।
भारत सरकार ने भ्रष्टाचार को मिटने और सरकारी कर्मचारीओ की जिम्मेवारी तह करने की उद्देश्य से सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ लागु किया। इस कानून के तहत हम सरकारी विधोगो से सूचना मांग सकते है। लेकिन भाई जरा संभल कर सूचना माँगा। क्योकि किसी भी सरकारी अधिकारी के सामने सूचना का अधिकार नाम लेते ही वह आपको येन-केन प्रकरण आपको फ़साने की योजना बनाने लग जायेगा और उसकी एस योजना में सभी सरकारी कर्मचारी उस का सहयोग में लग लायेगने और आपको फ़साने की पूरी कोशिश करेंगे।
मेरे साथ भी एसा ही हुआ है। मैं १० दिन पहले सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ की धरा ६(१) के तहत एक आवेदन पत्र लेकर विधुत विभाग भीनमाल गया था। तब मुझे भी कहा गया। सूचना तो तुझे बाद में देंगे। पहले हम तुझे क्या देते है वह देखना। और मेरा आवेदन लेने से भी इंकार कर दिया। फिर मैं उस आवेदन को स्पीड-पोस्ट से भेजा है। लोगो से मुझे पता लगा रही। मेरे द्वारा सूचना मांगने से नाराज हो कर येन-केन प्रकरण मुझे फ़साने की योजना बना रहे है। जेसी मुझे धमकी दी थी शायद वेसा ही मेरे साथ करने वाले है।