Saturday, December 11, 2010
पुलिस की छवि सुधारें-एसपी
एफआईआर दर्ज करवाने में आ गया पसीना
दर असल, रानीवाडा पंचायत समिति की रोपसी ग्राम पंचायत के सरपंच कालूराम मेघवाल ने 15 जुलाई 2010 को शिकायत दर्ज कराई कि उसके फर्जी हस्ताक्षरों से ग्राम सेवक उदयवीरसिंह ने करीब साढे आठ लाख रुपये का भुगतान उठा लिया| सरपंच की शिकायत पर महात्मा गांधी नरेगा में कार्यरत अधिकारियों ने बैंक से हस्ताक्षरों का सत्यापन करवाया, जिसमें सरपंच के हस्ताक्षर जाली निकले| इस पर रानीवाडा विकास अधिकारी एवं कार्यक्रम अधिकारी, ईजीएस, ओमप्रकाश शर्मा ने 19 जुलाई को रानीवाडा पुलिस थाने में ग्रामसेवक के विरुद्ध रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन थानाप्रभारी ने दर्ज करने से इनकार कर दिया|
तत्पश्चात जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने भी पुलिस अधिकारियों को एफआईआर दर्ज करने के लिए पत्र लिखा, लेकिन पुलिस का रवैया पहले जैसा ही रहा| आखिरकार जिला कलेक्टर केवलकुमार गुप्ता को ग्रामसेवक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखना पडा| तब जाकर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की है| इस संबंध में थानाधिकारी से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने अपना मोबाइल स्वीच ऑफ कर दिया|
भटकना पडा रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए काफी भटकना पडा रानीवाडा थाना पुलिस ने यह कहते हुए एफआईआर दर्ज नहीं की कि यह मामला उनके क्षेत्र का नहीं है| उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद मामला दर्ज हो पाया|
आमप्रकाश शर्मा, विकास अधिकारी, रानीवाडा
Friday, December 10, 2010
Central Vigilance Commissioner
or audios on any act of corruption directly from their mobile phones Thursday.
The new citizen-centric initiative of the CVC will enable even common man to carry out a sting operation. The complainant just needs to download
a mobile application software from the CVC website, www.cvc.nic.in, and can then start uploading audios or videos. It will be taken up by the commission for further enquiries.
Alternatively, one can register on the CVC website or SMS on 9223174440.
"The CVCs new portal is user-friendly and is an effective method for the citizens to report corruption," Central Vigilance Commissioner P.J. Thomas said.
However, former chief vigilance commissioner N. Vittal said: "The new portal can just act as a mere post office where the citizens can give in their complaints."
He also said that CVC should not just be a complaint collector but it should get powers to sanction prosecution against corrupt public servants.
दुनिया के भ्रष्ट देशों में भारत
jaipur
नई दिल्ली । देश में एक के बाद एक बड़े घोटालों ने देश का सर शर्म से झुका दिया है। चपरासी से लेकर देश के पैसे के खर्च पर निगरानी करने वाले सतर्कता आयुक्त तक सब भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे हैं। कोई कम तो कोई ज्यादा, पर भ्रष्टाचार के कीचड़ के छींटों से कोई भी बचा हुआ नजर नहीं आता। 2 जी स्पेक्ट्रम, आदर्श, तो कुछ ताजा नाम है ये सूची बहुत लम्बी है।
घूसखोरी आम बात
भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाली बर्लिन की गैर सरकारी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 86 देशों में 90 हजार लोगों के सर्वेक्षण में पाया कि 60 प्रतिशत लोग मानते हैं कि रिश्वतखोरी अब आम होती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस पर जारी रिपोर्ट में अफगानिस्तान, नाइजीरिया, इराक और भारत को सबसे ज्यादा भ्रष्ट देशों की सूची में रखते हुए कहा गया है कि इन देशों के पचास फीसदी लोगों ने रिश्वत मांगे जाने की बात स्वीकार की है।
कानून से उम्मीद बाकी
भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए भारत में पांच साल पहले कानून लागू किया। तब उम्मीद की थी कि कानून लागू होने के बाद भ्रष्टाचार में कमी आएगी। 5 सालों में कानून की सफलता के आंकड़े सामने नहीं आए हैं। उम्मीद कर सकते हंै कि जनता को अपने हक के लिए जागरूक करने में यह कानून बड़ा हथियार साबित होगा।
पुलिस को एक और तमगा
रिपोर्ट में भारत की पुलिस सर्विस को सबसे भ्रष्ट सेवा का तमगा दिया गया है। 191 देशों की सूची में भ्रष्टाचार में भारत 178वीं पायदान पर है। भारत को दस में से 3.3 अंक मिले है। करेप्शन प्रेसेप्शन इंडेक्स में भारत का स्थान 87वां है।
सिर झुकाने वाले आंकड़े
75 प्रतिशत लोग भारत में किसी न किसी तरह भ्रष्टाचार का सामना करते हैं
178 वें पायदान पर है भारत 191 देशों की सूची में
20 लाख करोड़ रूपए से ज्यादा की राशि वर्ष 1948 से 2008 तक बाहर भेजे
1/4 सांसदों पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप
1/3 लोगों को पुलिसको रिश्वत देनी पड़ी दुनियाभर में।
सबको पता है कौन सा जज भ्रष्ट है - SC
सबको पता है कौन सा जज भ्रष्ट है - SC
Saturday, December 4, 2010
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए पहले देश को ही मिटाना होगा
एक बार फ़िर सब कुछ लगभग ठीक ठाक सा चलता दिखने के बावजूद अचानक ही घोटालों , घपलों की फ़ेहरिस्त सी खुल रही है । अब तो लोगों को वर्षों पहले की नरसिम्हा सरकार की याद हो आई है ..जिस अकेली सरकार के लगभग सभी मंत्रियों ने अपने खाते में कम से कम एक बडा घोटाला तो डाला ही था । और अब इतने समय के बाद , एक बार फ़िर एक मनमोहिनी सरकार देश को घोटालों और घपलों के स्वर्ण युग में ले आई है । आम जनता प्रतिदिन बडी ही व्यग्रता से प्रतीक्षा करती है कि , देखा जाए कि आज कौन सा नया घोटाला आ रहा है पुराने घोटाले से थोडा सा ध्यान बंटाने के लिए । और भ्रष्टाचार का आलम देखिए कि देश के राजनीतिज्ञों , और प्रशासकों ,का भ्रष्टाचार तो अब ऐसी घटना है जिसका कोई संज्ञान ही नहीं लिया जाता , खुद सर्वोच्च न्यायालय ने अभी हाल ही में अपने अधीनस्थ मगर उच्च स्तर की अदालत के न्यायाधीशों के आचरण और भ्रष्टाचार लिप्तता का आरोपी होने जैसा कुछ कुछ ईशारा ही किया था कि , वहां कार्यरत एक वरिष्ठतम अधिवक्ता ने बाकायदा शपथपत्र देकर कहा कि जब उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार के छींटे खुद सर्वोच्च स्तर तक भी पहुंच चुकी है । अब बच ही क्या गया है , न्यायपालिका अनेकों बार भ्रष्टाचार के मुकदमों की सुनवाई करते समय ये कह चुकी है अब तो बस एक ही रास्ता बचा है कि भ्रष्टाचारियों को सरे आम फ़ांसी के फ़ंदे पर टांग देना चाहिए , मगर फ़िर भी इसके बावजूद भी आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी को फ़ांसी पर चढाना तो दूर , उनका बाल भी बांका नहीं किया जा सका है । उलटे ही अगर वो राजनीतिज्ञ है तो उसका कद और भी बडा हो जाएगा और अगर प्रशासक है तो निकट भविष्य में राजनीतिज्ञ बन जाने की संभावना प्रबल हो जाती है ।हाल ही के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन करने मे हुए घोटाले से शुरू हुआ ये सिलसिला अब थमने का नाम ही नहीं ले रहा है , आदर्श घोटाला हो या कि स्पेक्ट्रम घोटाला , सभी एक से बडे एक और निर्लज्जता और लालच की पराकाष्ठा को परिभाषित करते हुए । अब तो जैसे जनता ने भी इन पर प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है अन्यथा देश को जाने कितने पीछे धकेल देते ये घपले और घोटालों के लिए जिम्मेदार इन तमाम भ्रष्टाचारियों को न सिर्फ़ देश समाज और कानून का गुनाहगार माना जाना चाहिए बल्कि इंसानियत के दुश्मन की तरह का व्यवहार इनसे किया जाना चाहिए । वैसे तो भ्रष्टाचार नाम की ये बीमारी कोई एक देश , एक प्रांत , एक द्वीप या एक क्षेत्र की समस्या नहीं है बल्कि अब तो ये बार बार प्रमाणित हो चुका है कि विश्व का कोई भी देश किसी न किसी स्तर और किसी न किसी हद तक भ्रष्टाचार का दंश झेल चुका है ।हालांकि इस विषय का अध्य्यन करने वाले भ्रष्टाचार कारण एवं उन्मूलन पर अपने निष्कर्षों में कहते हैं कि , बुनियादी फ़र्क सिर्फ़ ये होता है कि किस देश और समाज ने भ्रष्टाचार के डंक को किस रूप में झेला है और उस दिशा में क्या सोचा और किया है । जैसे कई देशों में भ्रष्टाचार का विरोध खुद आम जनता ने इतनी तीव्रता से किया है कि उसने न सिर्फ़ भ्रष्टाचार के आरोपी को जाना पडा बल्कि उससे जुडे लोगों और संस्थाओं तथा सरकार तक का बंटाधार होते देर नहीं लगी है । कुछ देश तो इससे भी आगे जाकर हत्थे चढे भ्रष्टाचारियों को आम जनता की जरूरतों का कातिल करार देकर अपने गवर्नरों तक को फ़ांसी पर टांग चुकी है । विशेषज्ञ कहते हैं कि सबसे कठिन स्थिति उन देशों की है जहां भ्रष्टाचार को आम आदमी द्वारा ग्राह्य मान लिया गया है जैसे कि भारत और उसके आस पास के अन्य देश ।भ्रष्टाचार से लडने के लिए न तो कोई कानून न ही कोई सरकारी नीति कारगर साबित हो रही है । इसकी सबसे बडी वजह ये है कि आम लोगों ने इसे एक नियमित नियति के रूप में अपना लिया है । कुल मिलाकर ये मान लिया गया है कि भ्रष्टाचार एक जडहीन वृक्ष है , जिसकी शाखें , पत्ते , फ़ल और फ़ूल , जाने किन किन सूत्रों से खुद को सींच कर अपने आपको बढाने में लगी हुई हैं । आम आदमी को न तो उसका आदि दिख रहा है न अंत और अब तो उस भ्रष्टाचार से लडने का माद्दा भी चुकता सा दिख रहा है । हालांकि सूचना का अधिकार जैसे कानूनों ने कुछ हद तक भ्रष्टाचार को नग्न करने का कार्य तो अवश्य किया है किंतु इसके आगे की स्थिति फ़िर वही ढाक के तीन पात जैसी हो जाती है । आखिर सरकार कभी ये आंकडे क्यों नहीं दे पाई कि , अमुक भ्रष्टाचारी के पास से इतना धन जब्त किया गया और उस धन से फ़लाना ढिमकाना परियोजना का कार्य पूरा किया गया । या फ़िर ये कि , आज तक जिस भी स्तर पर किसी ने भी भ्रष्टाचार के विरूध बिगुल फ़ूंकने का काम किया है उन्हें सरकार समाज ने अपना आदर्श और अगुआ मान कर सर आंखों पर बिठा लिया हो या फ़िर कि उसकी और उससे संबंधित लोगों की सुरक्षा और संरक्षा की गारंटी ले ली हो । इसके उलट उस दिन से उसके जीवन की मुश्किलें बढ जाती हैं । भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अब नए सिरे से और हर स्तर से हर वो नियम हर उस नीति को बदलना होगा जो भ्रष्टाचार की गुंजाईश को पैदा करते हैं । ऐसा हो पाएगा ये अभी दूर की कौडी लगती है ॥
Thursday, December 2, 2010
अयोध्या से जुड़ी फाइलें गायब, अफसर मरा
- श्रीपति त्रिवेदी
डेटलाइन इंडिया - बाबरी मस्जिद का सच अब कभी सामने नहीं आएगा। इसकी 23 महत्वपूर्ण फाइलें गायब हो गई है। फाइलें गायब कैसे हुईं? राज्य के गृह विभाग में काम करने वाले एक छोटे अधिकारी को परम गोपनीय लॉकर में रखी हुई ये फाइलें घर ले जाने के लिए दी गई और रास्ते में इस अधिकारी की एक दुर्घटना में मौत हो गई। लाश तो मिल गई लेकिन फाइलें नहीं मिली। यह हादसा 6 जून 2009 का है और मृतक अधिकारी का नाम सुभाष भान साध है।
- अब सवाल यह है कि मायावती का क्या स्वार्थ है कि वे इन दस्तावेजों को गायब करें। जवाब यह है कि लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट में इन दस्तावेजों का हवाला दिया गया है और कहा गया है कि मामला मंदिर मस्जिद का कम और परस्पर विरोधी तथ्यों का ज्यादा है। मायावती को मुलायम सिंह को फंसाना है, उनके दोस्त कल्याण सिंह को फंसाना हैं, पूरी भारतीय जनता पार्टी को फंसाना हैं, बाबरी मस्जिद कांग्रेस सरकार के दौरान गिरी थी इसलिए कांग्रेस को फंसाना हैं इसलिए रास्ते में रूकावट बनने वाले दस्तावेज गायब करना ही आसान विकल्प था। मारे गए अधिकारी के परिवार वाले लगातार शिकायत कर रहे हैं कि ये दुर्घटना नहीं कत्ल हैं लेकिन माया मेम साहब की सरकार में सुनवाईयां नहीं होती।
एसएआर कोर्ट की कई महत्वपूर्ण फाइलें गायब
शास्त्रीनगर कॉलोनी की 101 प्रॉपर्टी की फाइलें गायब
गाजियाबाद।। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) में शास्त्रीनगर कॉलोनी की 101 प्रॉपर्टी की फाइलें गायब हो ग
जीडीए के वीसी एन.के.चौधरी ने बताया कि लापता प्रॉपटीर् का पता लगाने के लिए प्रत्येक कॉलोनी में प्रॉपर्टी का ऑडिट कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सारी प्रॉपर्टीज को ऑनलाइन करने की स्कीम है। यदि प्रॉपर्टी को ढूंढने में कामयाबी मिल गई तब जीडीए को करोड़ों रुपये की आमदनी होगी।
वीसी ने बताया कि 280.550 एकड़ भूमि में शास्त्रीनगर कॉलोनी को विकसित किया गया था। 13 ब्लॉकों में विकसित इस कॉलोनी में 1422 प्लॉट और 2746 मकान बनाए गए। इसके साथ ही 6 स्कूल, एक कम्यूनिटी सेंटर, एक पेट्रोल पम्प, 71 क्योस्क, एक गैस गोदाम, एक स्टेडियम, एक राजकीय पॉलीटेक्निक, एक विद्युत सब स्टेशन और 149 दुकानें बनीं। जीडीए के बनाए 9 मकान और 12 प्लॉटों पर विवाद है यानी 21 प्रॉपर्टीज पर मुकदमे चल रहे हैं।
फाइलें गायब
थाने में शिकायत के बाद भी नगर पालिका को मुरम की फाइल का पता नहीं चल पाया है। इस बीच दो और फाइलें पिछले एक महीने से गायब होने की बात सामने आई है। इस परिप्रेक्ष्य में सीएमओ ने प्रभार में रहे उपयंत्री दिनेश सिंह को नोटिस जारी किया है।
जानकारी के मुताबिक इन फाइलों को भी गायब करने में ठेकेदारों की अहम भूमिका मानी जा रही है। गौरतलब है कि आईएसडीपी योजना के तहत दो करोड़ से भी अधिक राशि के आवास निर्माण कार्य एवं समग्र विकास योजना के तहत लाखों रुपए के निर्माण कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। इसमें भी व्यापक पैमाने पर अनियमितता बरते जाने के संकेत हैं। कार्यालयीन रिकार्ड तलाशने के बाद यह तथ्य सामने आया है। इस संबंध में सीएमओ हेमशंकर देशलहरा ने कहा है कि प्रभार में रहे उपयंत्री दिनेश सिंह को नोटिस जारी किया गया है, जिसे लगभग पंद्रह दिन हो रहे हैं। यदि इसी तरह हीला-हवाला किया जाता रहा तो इसकी भी शिकायत थाने में दर्ज कराई जाएगी। बहरहाल नगर पालिका से निरंतर फाइलों के गायब होने की निर्माण एवं विकास कार्यों में व्यापक पैमाने में अनियमितता बरतने के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है और इसमें संबंधित ठेकेदारों एवं उपयंत्री के सांठ-गांठ की आशंका व्यक्त की जा रही है।
दूसरी ओर सीएमओ हेमशंकर देशलहरा ने विधायक ताम्रध्वज साहू से भेंटकर पालिका में व्याप्त अनियमितताओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराया है। पश्चात सीएमओ ने बताया कि विधायक वस्तुस्थिति की गंभीरता से अवगत हुए और विकास एवं निर्माण कार्य को ईमानदारीपूर्वक गति देने समझाया। सीएमओ ने विधायक की बातों पर संतुष्टि भी जाहिर की है।
ज्ञात हो कि कुछ दिनों पूर्व विभागीय मंत्री राजेश मूणत सीएमओ को राजधानी तलब कर पालिका में व्याप्त गतिविधियों से अवगत हुए थे। पश्चात सीएमओ को वस्तुस्थिति से विधायक को अवगत कराने भी निर्देशित किया था। नगर पालिका में फर्जी बिल को लेकर उपजे सीएमओ एवं अध्यक्ष के बीच द्वंद के चलते नगर पालिका अध्यक्ष ने सीएमओ का स्थानांतरण कराने एड़ी-चोटी एक कर दी।
विधायक ताम्रध्वज साहू ने भी इसके लिए पहल की थी। बात नहीं बनते देख पालिका अध्यक्ष ने नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे से भी गुहार लगाई थी। लेकिन शासन एवं प्रशासन अभी तक टस से मस नहीं हुआ। इस बीच नगर पालिका में अनियमितताएं परत दर परत खुलती नजर आ रही है और पालिका अध्यक्ष के लिए मुसीबतें बढ़ती जा रही है।
Sunday, November 28, 2010
सरकारी कार्यालय से दस्तावेज गायब होना तो आम बात है
मुम्बई। आदर्श सोसाइटी घोटाले की फाइलों में से कई अहम दस्तावेज चोरी होने के मामले की जांच मुम्बई पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है। सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक क्राइम ब्रांच की स्पेशल विंग इस मामले की जांच करेगी। उधर, इन कागजातों के गायब होने के बाद खलबली मच गई है। आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला मामले से सम्बंधित दो फाइल नोटिंग महाराष्ट्र के शहरी विकास विभाग से गायब हो गए थे। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक इन कागजों में राज्य सरकार के अघिकारी- मंत्रियों की टिप्पणियां अंकित हैं। विभाग के सचिव गुरूदास बाज्पे की शिकायत पर इस बारे में मुम्बई के मैरीन ड्राइव पुलिस थाने में चोरी और दस्तावेज नष्ट करने के प्रयास का मामला दर्ज
मुम्बई में अमीर लोगों के दस्तावेज गायब हुए तो क्राइम ब्रांच की स्पेशल विंग इस मामले की जांच करेगी। गरीबों की फाइल गायब होती तो कोई नहीं सुनता है|
भीनमाल नगर पालिका से भी कई फाइलें गायब है जिसकी वजह से किसी का हक मारा जा रहा है लेकिन कोई सुनने वाला नही है| एक ही प्लोट से सम्बन्धित सन 1968, 1974, 1992, कई पत्रावलियों तो उपलब्ध है लेकिन उनमें से दस्तावेज गायब है|
http://humsubchorhain.blogspot.com/2010/10/blog-post_27.html
Monday, November 22, 2010
भ्रष्टाचार में भारत 87वे स्थान पर
भारत की जनता गरीब व अशिक्षित होने के भी कई लाभ हमें मिलते है| यह की जनता गरीब व अशिक्षि होने के कारण अपने हक के लिए भी नहीं जा सकते न्यायालय तक| जिस दिन भारत से गरीबी और अशिक्षा मिट गई उस दिन हमारे देश की की अदालतों में 400 लाख करोड केस विचाराधिन होगें अब तो सिर्फ 400 करोड केस ही हमारे देश की अदालतो में विचाराधिन है|
सूचना का अधिकार
पत़्र स्पीड पोड से भेज कर प्रथम अपील अधिकारी का नाम जानना चाह था| लेकिन लोक सूचना
अधिकारी ने पत्र लेने से इन्कार कर दिया| मुझे प्रथम अपील अधिकारी का पता मालुम नहीं
होने के कारण मैं इस लोक सूचना अधिकारी के विरूद्ध प्रथम अपील पेश नहीं कर पा रहा हू
और 30 दिवस की अवधि पूर्ण होने को आई है|
http://www.jantakiawaz.com/RTI2005.pdf
Monday, November 1, 2010
15 साल से खुद बीमार है अरहरा का स्वास्थ्
झारखंड में गुमला जिला के अंतर्गत कमडरा ब्लॉक में पड़ने वाले अरहरा गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र गत 15 साल से अधुरा बना पड़ा है। झारखण्ड 10 साल से बिहार से अलग हो कर अपना रांज चला रहे है। यहां बार सरकारें गिरी और बनी तथा दो बार राष्ट्रपति शासन लगा, लेकिन इसके बावजूद इस अभागे गांव का भाग्य नहीं बदला और आज तक इस गांव में स्वास्थ्य केन्द्र नहीं बन पा रहा है।
read full article on www.firstnewslive.com
Wednesday, October 27, 2010
जिला कलेक्टर स्तरीय जन सुनवाई

प्रार्थी रमेश कुमार सुथार द्वारा दिनांक 17-5-2007 को जिला कलेक्टर स्तर पर हो रही जन सुनवाई में एक आवेदन पत्र पेश अपनी जमीन से सम्बन्धित सभी दस्तावेजों की नकलें चाही गई|
नगर पालिका भीनमाल ने येनकेन प्रकारण प्रार्थी को नकलें देना नहीं चाहता था| आखिर में दिनांक 15-10-2007 (पत्र क्रमांक-नपाभी/5221/07) को नगर पालिका भीनमाल ने नकलें उपलब्ध नहीं कराने का कारण यह बताया कि ‘उपलब्ध होने पर दी जायेगी’ एवं दिनांक 18-6-2008 (पत्र क्रमांक-नपाभी/1708/08) को नगर पालिका ने लिखा की – ‘परन्तु रेकर्ड 38-40 वर्ष पुराना होने से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है’
नगर पालिका के इस तरह के जवाब मिलने पर श्रीमान् उपखण्ड अधिकारी भीनमाल ने दिनांक 23-8-2008 (पत्र क्रमांक-जनसुनवाई/08/6316) ने नगरपालिका को लिखा कि- आप द्वारा प्रासंगिक पत्र के द्वारा इस कार्यालय को अवगत कराया है कि वांछित प्रकरण में चाही गई नकलों का रेकार्ड 38-40 वर्ष पुराना होने से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है| इस क्रम में लेख है कि अभी हाल ही में आपके नगर पालिका कार्यालय से सेवानिवृत वरिष्ठ कर्मचारी श्री नैनाराम बंजारा सेवानिवर्त हुये है उक्त सेवानिवृत कर्मचारी भूमि सम्बन्धी एवं अन्य पालिका का महत्वपूर्ण कार्य भार देखता आ रहा है| अतः उक्त सेवानिवृत कर्मचारी द्वारा अपने जिम्मे का चार्ज सेवानिवृत होने से पूर्व पालिका कर्मचारी को उक्त प्रकरण से सम्बन्धित पत्रावली दर्ज है तो परिवादी श्री रमेश कुमार सुथार को उक्त पत्रावली की नकलें उपलब्ध करावाई जाना सुनिश्चित करे| यदि उक्त प्रकरण से सम्बन्धित पत्रावली चार्ज रिपोर्ट में अंकित नहीं है तो यह सुनिश्चित करे| यदि उक्त प्रकरण से सम्बन्धित पत्रावली चार्ज रिपोर्ट में अंकित नहीं है तो यह सुनिश्चित करे कि उक्त पत्रावली तत्समय किसके चार्ज में रही तथा किस कर्मचारी द्वारा चार्ज आदान-प्रदान की सूची से भलीभाति स्पष्ट हो जायेगा| फिर भी यदि उक्त पत्रावली उपलब्ध होना सम्भव नहीं हो पाने की स्थिति में तत्समय उक्त पत्रावली जिस कर्मचारी के चार्ज में रही है| उक्त कर्मचारी के विरूद्व पुलिस थाना में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई जाकर स्थिति स्पष्ट की जावे ताकि लम्बे समय से चल रहे जिला स्तरीय जन सुनवाई प्रकरण संख्या 496/07 दिनांक 17-05-2007 का निस्तारण किया जा सके|
कृपया उक्त पत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता देवें|
Wednesday, October 20, 2010
क़ानूनी सलाह दीजिये
अशोक कुमार ने अपनी जमीन के नियमन (पट्टा) हेतु नगरपालिका में अपने नाम से आवेदन पेश किया| नगर पालिका ने नियमन हेतु शुल्क जमा कराने के आदेश अशोक कुमार के नाम कर दिये| अशोक कुमार ने नियमन शुल्क नगर पालिका में जमा करा दी|
नियमन शुल्क जमा कराने के बाद अशोक कुमार ने अपने कब्जे के आधार पर जमीन का बेचान जरीए रजिस्ट्री राजेश के नाम कर दिया| राजेश ने उक्त जमीन का पट्टा अपने नाम बनाने के लिए नगरपालिका नियमन को आवेदन किया| नगर पालिका ने राजेश के आवेदन को अशोक कुमार के आवेदन के साथ जोड दिया|
नगर पालिका ने अशोक के नाम पट्टा जारी कर दिया|
पट्टा जारी होने के बाद उसी भूमि को पुनः रजिस्टरी कराकर उसी राजेश को पट्टे के आधार पर पुनः बेची|
1- अशोक के द्वारा जमीन का बेचान देने के बाद भी नगर पालिका ने पट्टा अशोक के नाम जारी किया| अगर यह कानूनी सही नहीं है तो सलाह दे|
2- अशोक ने एक ही जमीन को रजिस्टर के जरीए दो बार बेचा| अगर यह कानूनी सही नहीं है तो सलाह दे|
Tuesday, October 19, 2010
अशिक्षित और गरीब लोगों के साथ अन्याय कहा होता है?
हमारी न्यायपाली सभी के साथ पूरी ईमानदारी से न्याय करती है। अशिक्षित और गरीब लोगो के साथ अन्याय तो निचले स्टार पर यानि ग्राम पंचायत / नगर पालिका में होता है। वहां पर दस्तावेजों को गायब कर, दस्तावेजों में हेरा-फेरी कर, समय पर नक़ल नहीं देना, आगामी कार्यवाई की समय सीमा के बाद नकले देना, अधूरी नकले देना। इस प्रकार निचले स्टार पर पुरा केस को अशिक्षित / गरीब के विरूद्ध बना दिया जाता है| जिसके कारन अदालत में वह केस अशिक्षित / गरीब के विरूद्ध जाता है और वह गरीब और गरीब होता है।
Friday, October 15, 2010
भारत में सात करोड़ मकानों की कमी
बैंक ने अपनी एक रपट में कहा है कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में मध्यम तथा निम्न वर्ग के लगभग तीन करोड़ परिवार मकान खरीदना चाहते हैं लेकिन उनको आवास ऋण सुलभ नहीं है।
बैंक ने दक्षिण एशिया में आवासीस वित्तपोषण पर अपनी रपट में कहा है, 'केवल भारत में ही, आवासीय इकाइयों की कमी दो करोड़ से लेकर सात करोड़ तक है क्योंकि इसमें से आधी मांग को आवासीय तथा आवासीय वित्तपोषण बाजारों द्वारा लाभप्रद सेवाएं दी जा सकती हैं।
इसमें कहा गया है कि वित्तीय प्रणाली में कमियों को दूर किया जाना चाहिए ताकि रेहन दाताओं तथा डेवलपरों के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण अवसर सुनिश्चित किए जा सकें। रपट के अनुसार भारत में उन 2.3-2.8 करोड़ परिवारों के लिए मकान बनाना आर्थिक रूप से व्यावहारिक होगा जिनकी मासिक आय 5,000-11,000 रुपए है। ये परिवार देश की शहरी जनसंख्या का 45 प्रतिशत हिस्सा है।
सता रहा पौने दो करोड़ का करंट
इस प्रकार के बिल देखकर उपभोक्ताओं को अब विभाग के चक्कर लगाने पड़ रहे हैंै, लेकिन डिस्कॉम अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा बिल में अधिक राशि को ऑडिट की वसूली होना बताकर जमा करवाना अनिवार्य बताया जा रहा है। जिसको लेकर उपभोक्ताओं में खासा आक्रोश बना हुआ है।जानकारी के अनुसार गत माह डिस्कॉम सहायक अभिंयता भीनमाल के अधीनस्थ नगर सहित करीब तीन दर्जन गंावों के करीब बीस हजार उपभोक्ताओं की विभागीय ऑडिट टीम जोधपुर द्वारा 12०० उपभोक्ताओं से पौने दो करोड़ से अधिक की राशि वसूली योग्य बताकर इस राशि को आगामी बिल के साथ जोड़ दिया। इस कारण कई उपभोक्ताओं के इस माह का बिल हजारों और लाखों में आते ही उनके हाथ पैर कंाप गए। अब यह उपभोक्ता पिछले दस दिनों से डिस्कॉम कार्यालय के चक्कर काट-काटकर थक गए हंै। आर्थिक रुप से कमजोर कई उपभोक्ताओं के समक्ष हजारों में बिजली बिल चुकाना और आगे दीपावली का त्यौहार मनाना मुश्किल बना हुआ है, क्योंकि उनके समक्ष बिल जमा नहीं करवाने की दशा में कनेक्शन काटने का भय भी बना हुआ है। वहीं कई कृषि उपभोक्ताओं के लिए लाखों में बिल का भुगतान करना मुश्किल कार्य बन गया है।
प्रकरण दर्ज करवा लें
ञ्चऑडिट के दौरान वाजिब राशि को भरवाने के लिए कहा जा रहा है, यदि उपभोक्ता संतुष्ट नहीं है तो वह समझौता समिति में प्रकरण दर्ज करवा सकता है और बिलों की जांच में गैर वाजिब राशि जुड़ी है तो उसमें सुधार के लिए पुन: ऑडिट टीम को बुलाया जाएगा।
- बीएल सुखाडिय़ा,
डिस्कॉम सहायक अभियंता, भीनमाल
भ्रष्टाचार का क़ानूनी रास्ता -- "समझौता समिति"- जो व्यक्ति रिश्वत देता है उसी का बिल होता है कम.....
भ्रष्टाचार का अड़ा विधुत विभाग
Wednesday, October 13, 2010
एक इमानदार व्यक्ति
मुझे भारत के संविधान पर पूर्ण विश्वास है। मैं न्याय पालिका पर पूर्ण विश्वास करता हूँ। शिक्षा व् जानकारी के आभाव में अगर कोई एसा वेसा लिखा होतो माफ़ कर देना।
एक जमीन के हक़ को लेकर नगर पालिका, कलेक्टर, कोर्ट, हाई कोर्ट में कई केस चल रहे है। जबकि जमीन एक है, मूल विवाद के पिता की जमीन है और दो बेटो में बाटनी है। वर्त्तमान में उस एक जमीन को लेकर हाई कोर्ट में लगभग १० केस चल रहा हेई और हो सकता है। यह केस सुपरिम कोर्ट में भी जा सकता है। और उसकी एक जमीन को लेकर भविष्य में भी कई केस पैदा होंगे।
एक पिता की जमीन उसे दो भाई में आपस में बांटनी है।
वर्तमान में इस विवाद को लेकर १५-२० केस अलग अलग अदालतों में चल रहा है और इसी विवाद को लेकर भविष्य में केसों की संख्या बड़ती जायेगी।
आप जानते है एसा क्यों हुआ?
इतनी छोटी बात si को लेकर इतने सारे केस क्या हुआ?
यह सब एक इमानदार व्यक्ति की ईमानदारी से हुआ है। अगर जमीन मालिक आपनी ईमानदारी छोड़ कर नगर पालिका के कर्मचारी को रिश्वत में दस हजार रुपए दे देता जो उसने मांगे थे। तो आज अदालते में इतने सारे केस विचाराधीन नहीं होते। और उस ईमानदारी का परिवार भी खुश व उच्च शिक्षा प्राप्त करता।
उस की ईमानदारी की वजह से आज उसका परिवार अदालतों के चाकर कट रहा है।
अगर उस जमीन के कारण जितने भी केस पैदा हुआ है। उन्ह सभी केसों को मिला कर स्टार्ट से जाँच करवा कर नय सिरे से विवाद पर कार्यवाही करने के हमारे देश के कानून में क्या है?
एसा क्या करे की जिससे सभी केस मिल जाये और स्टार्ट से जाँच हो जाये।
अगर एसा हो जाता है। तो विचाराधीन ४ करोड़ केस की संख्या कम हो कर ५० लाख हो जाएगी।
और देश का पैसा भी बच जायेगा।
Monday, October 11, 2010
देश की आदालतो में ४ करोड़ केस क्या है?
कभी सरकार ने यह जानने को कोशिश की - अदालतों में केस की संख्या दिन-बी-दिन क्या बढ रही है? किन-किन कारणोंन से अदालतों में केसों की संख बढ रही है?जिसके कारण आज देश की अदालतों में ४ करोड़ केस विचाराधीन है? केसों की संख्या कम की जा सकती है।कई केस तो एक दुसरे से जुड़े होते है. अगर इस प्रकार के केसों को मिला कर नई सिरे से सुनवाई की जाय तो? ७५% कासोने की संख्या कम हो जाएगी.
Sunday, October 10, 2010
सच के लिए जेल भी मंजूर
सच जानना चाहा तो हाल यह हो गया की घर छुटा, बच्चों की बधाई छूटी, झूठे मुकदमों मैं जेल कटी और जब इससे भी पुलिस का मन नहीं भरा तो इंतनी धारों में मुकदमे लादे की परिवार समेत आरटीआई के एक सिपाहइ को खुद को तड़ीपार करना पड़ा गया यानी पुरे एक साल से ज्यादा वक़्त तक घरबार छोड़कर फरार रहना पड़ा। मुरादाबाद के भोजपुर इलाके के रहने वाले सलीम बेग ने सूचना के अधिकार कानून का सहारा लेकर हारी जंग जीती। मनारेगा योजनाओं में भष्टाचार का मामला हो या फिर स्थानीय गैस एजेंसी में फर्जी कनेक्शनों की बात हो। सलीम ने सच को उजागर करने की अपनी जंग तमाम मुश्किलों के बाद भी जारी राखी। पुलिस में जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का खामियाजा यह हुआ की सलीम को १८ दिन जेल की सीखचों के पीछे गुजारने पड़े। सलीम ने पुलिस भर्ती में आय आवेदनों और भर्ती के मापदंडों पर सवाल पूछने की हिमाकत की तो पुलिस ने पहले तो उनसे सूचनाओं के लिए लाखों रुपे की मांग कर डाली। सूचना देने में टालमटोल हुई तो सलीम राज्य सूचना आयोग चले गए और नतीजा यह हुआ की तत्कालीन एसपि देहात पर जुलाई २००७ में २५ हजार रुपए का जुरमाना लग गया। तिलामिल्लाई पुलिस ने सलीम पर मुकदमों की बोछार कर दी। मामला एक बार फिर अदालत पहुंचा और सलीम को परेशान करने की वजह से एसपी की तनख्वाह से छः हजार रुपए काटे गए। इसके बाद तो पुलिस ने सलीम को परेशान करने के लिए हर हथकंडा आजमाया। नतीजा यह हुआ कि पुलिसिया कहर से बचने के लिए सलीम को डेढ़ साल भोजपुर से बाहर रहना पड़ा। गैगस्टर एक्ट में दर्ज गैंग और उनके सदस्यों कि जानकारी के साथ ही पुलिस हिरासत में मरने वाले लोगों कि भी तादाद सलीम ने पुलिस विभाग से पूछी। इतना ही नहीं यूपी सरकार की ओर से मायावती के जन्मदिन पर छोड़े गे कड़ीयों के बारे में भी जानकारी मांगी। पुलिस और प्रशासन की लाख ज्यादतियों को झेलने के बाद भी सलीम सच्चाई के रस्ते पर निडर होकर चाले जा रहे है।
नकारा है वह प्रजातंत्र जो पगार तक नहीं बढ़ाने दे
नकारा है वह प्रजातंत्र जो पगार तक नहीं बढ़ाने दे
Saturday, October 9, 2010
भ्रष्टाचार मिटाओ देश बचाओ Bhrashtachar Mitao Desh Bachao
देश आर्थिक रूप से गुलाम हो गया है .............
इसी गुलामी के खिलाफ अपनी आजादी को बचाये रखने और अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार रखने के लिये देश भर में किसान, खेत मजदूर, आदिवासी जगह-जगह लड़ रहे हैं। 9 अगस्त 2010 को मऊ कलेक्ट्रट में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ दिवस पर आयोजित कार्यक्रम स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय लोगों को हक दो धरने को सम्बोधित करते हुए सच्ची मुच्ची के सम्पादक अरविंद मूर्ति ने कही उन्होंने कहा कि प्रकृति, पर्यावरण और जन संघर्षो को रोकने बचाने का एक मात्र तरीका है। स्थानीय संसाधनों स्थानीय लोगों का हक हो। परन्तु सरकार यह मानने को तैयार ही नही हैं। और वह इन सारे संसाधनों को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को बेच रही है। इस पूरी लूट को देश की संसद के द्वारा वैधता दी जा रही है। जो खुद इनके हाथों बिक्री हुई हैं।
धरने को पी.यू.एच.आर. के जोनल सचिव वसन्त राजभर ने सम्बोधित करते हुए कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का प्रधानमंत्री जनता के द्वारा नहीं चुना जाता है। यह लोकतंत्र के लिये देश के लिये शर्म की बात है मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद की तनख्वाह देश से नहीं लेते बल्कि अमेरिका से पेंशन लेते है। धरने को विजय सिंह हैवी ने सम्बोधित करते हुए कहाकि आपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर निर्दोष गरीब आदिवासियों का सरकार कत्ल कर रही है जबकि वे अपने संसाधनों पर अपने हक की मांग कर रहे है। यह पूरी व्यवस्था अमीरों दंबगों के पक्ष में खड़ी है इसका ताजा उदाहरण शहर के नर्सिंग होम के मैले के टैंक में मरे तीन गरीब सीवर सफाई कर्मियों की मौत का हैं। जब यह काम कानून अपराध है। तो इसे करवाने वालो पर आज तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई। धरने को हाजी अनवारूल हक, का रामनवल आदि ने भी सम्बोधित किया धरने में विनय कुमार, सुखराम राजभर, हाजरा खातून, अवधेश कुमार साहनी, राजकुमार, इनौस के का0 अर्जुन सहित कई प्रमुख साथी शमिल रहे धरने का आयोजन जन आन्दोलन का राष्ट्रीय समन्यव पी0यू0एच0 आर0 मूवमेंट फार राइट ने किया।
Minister of Education, India
Minister of Education, India
Sub: making use of CWG Sports facility into Indian International Sports University
......Dear sir;
In India, the Government system has had a legacy of colonial (mindset of ruler-ruled), and failed in understanding developmental needs of its people. After 60 years of independent statehood, any act of state is none more than a 'show off' as against a genuine expression of self development. Against all odds, India somehow could manage itself to emerge as a noticeable actor in the field of sports, and yet .... the Babu's (government IAS/ politicians) still consider our sportsmen, like beggars. For instance, in CWG, the foreign media (BBC) had to give a 'kick ass start' to the Indian government, providing it the insult it deserved, in a mood to treat foreign sportsmen like it used to treat Indian sportsmen. Time has now come that mindset of Government needs to change and it must respect sportsmen of India in a similar way, as any international citizen with same potential.
I have reflected upon this mindset of those, and fear that after 13 days of CWG games, it will have a new game to plunder CWG games village, stadia, hospital and gymnasium and media centre for their personal grab. Power and politics will finish off the properties built with public finance as it was already with Asiad Games.
As a Minister of Education, you need to have a national responsibility and must show a courage to bring up the following proposal to the cabinet:
1. All facilities created by CWG including games village, stadia, hospital, media centre etc.. should be a part of Indian International Sports University, New Delhi.
2. The University should award degree of MA (in field) for gold medallists, BA (in field) for Silver and IA (in field) for Bronze in CWG 2010 game, irrespective of the nationality of sportsmen.
3. This University shall act as nodal agency for nourishing sportsmen across the country, and affiliate the institutions with stadia and hospitals, trainers and coaches, across the India.
4. The University should award MA, BA, IA degrees for sports in different field, on the basis of annual competition, and international records. Students shall get formal and informal education on health care, mental fitness, best practices (including adverse effects of doping), and competitive and team spirit and leadership.
5. This University is an institution with world class facility, shall keep holding future CWG, Asiad, Olympics, and ideas of private branded of games, in addition to its regular annual university events. The income from these international and national events shall finance the infrastructure and operational costs.
6. The students with degree of this University shall be mentally and physically fit, and be also good in competitive and team spirit and leadership. Most of these will be sought after by recruiters from state police, private/government security services, Indian military, and in corporations. Some of those can wish to take it as career of sportsmen, and earn livelihood by bid for international awards in Olympic, CWG and Asiad etc..
7. This is a right time that congress leadership can take this decision, because Delhi and centre governments, both have Congress leadership. It may be politically correct to give this University name of Rajiv, Indira, or JawaarLal so that the opposition to it from Congress is minimized who would not like University idea.
This is very important that the corrupt government officers and petty politicians, are some how not allowed to take an advantage of the 'system' and plunder CWG village facility for own benefits. If that is allowed to happen, this becomes 'Common Wealth Games' understood as Fun (Games) with Public (Common) Money (Wealth).
May God Bless You. I hope, you can do a lot being at seat of Indian Education Minister; and if you are an honest person, at least you will raise hands by this idea.
With best regards
K G Misra
Friday, October 8, 2010
भारतीय की जान की कीमत
(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)
अरे - समझौता गाड़ी की मौतों पर - क्या आंसू बहाना था
उनको तो - पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही - जाना था
मरने ही जा रहे थे - लाहौर, करांची - या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर - ये नेता - हमारा पैसा तो ना खर्च करते
और तुम - भारतियों, टट्पुंजियों - कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी
जब हिसाब किया - तो निकला तुम्हारा ख़ून - बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो - दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या - खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख - तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख
तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन, ही अच्छे
देखो कैसे बन बैठे हैं - बिके हुए सिक यू लायर मीडिया के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है - इसलिए - यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में - तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं
जाग जा - अब तो जाग जा ऐ भारत - अब ऐसे क्यूँ सोता है
वो मार दें - और तू मर जाये - लगता ऐसा ये "समझौता" है
प्रियजनों की मौत पर - फूट फूट रोवोगे - वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है - ख़ून ना खौले जिस समाज का - वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे
पांच साल में - आधा घंटा तो - वोट के लिए निकाला कर
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें - तो उसमे से - तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है - परायों को तू मात दे दे
बुद्धिमान है तू - अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर
वोट दे कर अपनों को - वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज - समूल समाप्त कर
ऐ भारत - तू उठ खड़ा हो - निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर
अपने भारतीय होने पर - दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर - कुछ तो कर - अरे अब तो कुछ कर
रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
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तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन
(अभागे भारतीय की फरियाद पर सिक-यू-लायर(Sick you Liar, बीमार मानसिकता वाले झुट्ठे) नेता द्वारा सांत्वना भरे कुटिल उपदेश की तरह पढ़ें)
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अच्छा!!! वो दुश्मन है? बम फोड़ता है? गोली मारता है?
मगर सुन - दोस्ती में - इतना तो सहना ही पड़ता है
तय है - जरुर खोलेंगे एक और खिड़की - उसकी ख़ातिर
मगर - हम नाराज़ हैं - तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है
तुम भी तो बड़े जिद्दी हो - दुश्मन भी बेचारा क्या करे
इतने बम फोड़े - शर्म करो - तुम लोग सिर्फ दो सौ ही मरे ? (कितने बेशर्म हो तुम लोग)
चलो ठीक है - इतने कम से भी - उसका हौंसला तो बढ़ता है
और फिर - तुम भी तो आखिर १०० करोड़ हो(*) - क्या फर्क पड़ता है?
[(*) ११५ करोड़ में १५ करोड़ तो विदेशी घुसपैठिये हमने ही तो अन्दर घुसाएँ हैं वोटों के लिए]
अच्छा! समझौते की गाड़ियों में दुश्मन भी आ जाते हैं???
क्या हुआ जो दिल लग गया यहाँ - और यहीं बस जाते हैं
बेचारे - ये तो वहां का गुस्सा है - जो यहाँ पर उतारते हैं
वहां पैदा होने के पश्चाताप में - यहाँ पर तुम्हें मारते हैं (क्यों न मारें?)
क्या सोचता है तू ? मरना था जिनको - वो तो गए मर
तू तो जिन्दा है ना - तो चल - अब मरने तक हमारे लिए काम कर
और क्या औकात थी उन मरने वालों की ? सिर्फ २०० रुपये मासिक कर (*१)
हम क्या शोक करें - क्यों शोक करें अब - ऐसे वैसों की मौत पर ?
अच्छा! आतंकवादी तुम्हें लूटता है? मारता है? मजहब के नाम पर ?
पर आतंकवादी का तो कोई मजहब ही नहीं होता - कुछ तो समझा कर (बेवकूफ कहीं के)
तू सहिष्णु है - भारत सहिष्णु है - यह भूल मत - निरंतर याद कर
क्या कहा? आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध का अधिकार? - बंद यह बकवास कर (अबे,वोट बैंक लुटवायेगा क्या)
इन बेकार की बातों में - न अपना कीमती वक्त बरबाद कर
भूल जा - कुछ नहीं हुआ - जा काम पर जा - काम कर
तेरे गुस्से की तलवार को - हमारी शांति की म्यान में रख
हमने दे दिया है ना कड़ा बयान - ध्यान में रख
जानते हैं हम - इस बयान पर - वो ना देगा कान
चिंता ना कर - तैयार है - एक इस से भी कड़ा बयान
दे रक्खा है उसे - सबसे प्यारे देश का दरजा (*२)
चुकाना तो पड़ेगा ना - इस प्यार का करजा
दुनिया भर से - कर दी है शिकायत - कि वो मारता है
दुनिया को फुरसत मिले - तब तक तू यूँ ही मर जा
किस को पड़ी है कि - कौन मरा - और मार गया कौन
आराम से मर - तेरे लिए भी रख लेंगे - २ मिनट का मौन
*1 : Profession Tax Rs.200/-per month
*2 : Most Favoured Nation
रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
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