Friday, October 8, 2010

भारतीय की जान की कीमत

(बाल-बुद्धि भारतियों पर कवि का कटाक्ष)

अरे - समझौता गाड़ी की मौतों पर - क्या आंसू बहाना था
उनको तो - पाकिस्तान नाम के जहन्नुम में ही - जाना था
मरने ही जा रहे थे - लाहौर, करांची - या पेशावर में मरते
और उनके मरने पर - ये नेता - हमारा पैसा तो ना खर्च करते

और तुम - भारतियों, टट्पुंजियों - कहते हो हैं हम हिंदुस्थानी
जब हिसाब किया - तो निकला तुम्हारा ख़ून - बिलकुल पानी
औकात की ना बात करो - दुनिया में तुम्हारी औकात है क्या - खाक
वो समझौता में मरे तो १० लाख - तुम मुंबई में मरो तो सिर्फ ५ लाख

तुम से तो वो अनपढ़, जाहिल, इंसानियत के दुश्मन, ही अच्छे
देखो कैसे बन बैठे हैं - बिके हुए सिक यू लायर मीडिया के प्यारे बच्चे
उनके वहां मिलिटरी है - इसलिए - यहाँ आ के वोट दे जाते हैं
डेमोक्रेसी के झूठे खेल में - तुम पर ऐसे भारी पड़ जाते हैं

जाग जा - अब तो जाग जा ऐ भारत - अब ऐसे क्यूँ सोता है
वो मार दें - और तू मर जाये - लगता ऐसा ये "समझौता" है
प्रियजनों की मौत पर - फूट फूट रोवोगे - वोट नहीं क्या अब भी दोगे
लानत है - ख़ून ना खौले जिस समाज का - वो सज़ा सदा ऐसी ही भोगे

पांच साल में - आधा घंटा तो - वोट के लिए निकाला कर
विदेशियों के वोटों से जीतने वालों का तो मुंह काला कर
सब चोर लगें - तो उसमे से - तू अपने चोर का साथ दे दे
अपना तो अपना ही होता है - परायों को तू मात दे दे

बुद्धिमान है तू - अब अपनी बुद्धि से काम लिया कर
वोट दे कर अपनों को - वन्दे मातरम का उद्घोष कर
आक्रमणकारियों के दलालों का राज - समूल समाप्त कर
ऐ भारत - तू उठ खड़ा हो - निद्रा, तन्द्रा को त्याग कर

अपने भारतीय होने पर - दृढ़ता से अभिमान कर
कुछ तो कर - कुछ तो कर - अरे अब तो कुछ कर

रचयिता : धर्मेश शर्मा
संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा
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